Friday, May 29, 2020

है जो शख्स, मेरे अंदर


है जो शख्स, मेरे अंदर,

ये मुझको पहचानता नहीं है | 

ज़िद करता है, मिलने की 'तुमसे'

अब ये मेरे काम का नहीं है | 

कहता हूँ जा अकेला छोड़ दे मुझे,

अंजानो संग जीना अब आसां नहीं है | 

पर सोचता हूँ, मान लूँ इसकी बात,

भुलाना 'तुमको' भी तो आम नहीं है |   

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