दिल के जज़्बात जो ज़ुबाँ बयां न कर सकी तो सहारा कलम बन गयी
Friday, May 29, 2020
है जो शख्स, मेरे अंदर
है जो शख्स, मेरे अंदर, ये मुझको पहचानता नहीं है | ज़िद करता है, मिलने की 'तुमसे' अब ये मेरे काम का नहीं है | कहता हूँ जा अकेला छोड़ दे मुझे, अंजानो संग जीना अब आसां नहीं है | पर सोचता हूँ, मान लूँ इसकी बात, भुलाना 'तुमको' भी तो आम नहीं है |
Nice
ReplyDeleteThank You Bhai
Delete👌👌
ReplyDeleteलाज़बाब!
Good one
ReplyDeleteThank You
DeleteVery Nice Bhai...
ReplyDeleteThank You Bhai
Deleteअति सुन्दर
ReplyDeleteExcellent bro
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