Thursday, May 14, 2020

इक सपना था वो शीशे का


इक सपना था वो शीशे का,

जो सजा हुआ था अरमाँ से | 

ख्वाहिश थी तुझको पाने की,

उमड़ रही थी सदियों से | 

पर साज़िश की उस किस्मत ने,

सब तोड़ दिया, इक पत्थर से | 

तो टूटे शीशे, उस सपने के,

राहों में बिखरे, इक आंधी से | 

हर कदम, ज़ख्म अब देता है,

जब गुज़रता हूँ, इन राहों से | 

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