ज़ुल्फ़ें तेरी, जो बिखरी थीं,
मेरी उँगलियों में, उलझी थीं |
सुलझाने में, उन ज़ुल्फ़ों को,
कुछ ज़ुल्फ़ें, मुझसे टूटी थीं |
टूटी हुईं, तेरी ज़ुल्फ़ें मैंने,
पन्नो में दबा के, रख ली थी |
पलटे जो पन्ने, तो याद आया,
लहराती कभी, ये ज़ुल्फ़ें थीं |
छुआ इन्हे तो, लिपट गयीं,
जैसे ये पहले, लिपटीं थीं |
भूरी सी, कभी ये ज़ुल्फ़ें तेरी,
चेहरे पर मेरे, बरसीं थीं |
😍😍😍😍😍😍
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteThank You
DeleteChhua inhe to Lipat gai..
ReplyDeleteJaise ye pehle Lipti thi...
Best line... 👍👍
Shukriya Bhai
DeleteAmazing
ReplyDeleteThank You
DeleteWell written brother 😎😎😎
ReplyDeleteThanks a lot....
Deleteबहुत खूब मित्र
ReplyDeleteThanks a Lot
DeleteSuprb
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