Friday, October 2, 2020

तू दुर्गा बन


सीमा पर जो, 

जवान खड़ा है, 

फिर बेबस क्यूँ, 

हिंदुस्तान पड़ा है? 


रक्षा करे वो, 

भारत माता की, 

फिर दिल पर क्यूँ, 

ये बोझ बड़ा है? 


इक बेटा तो, 

जान है देता, 

पर दूजा बनकर, 

शैतान खड़ा है। 


रोये है बहुत, 

मेरी भारत माता, 

अपने ही कपूत का, 

तो खौफ़ बड़ा है। 


अब बनना होगा, 

तुझे दुर्गा बेटी, 

सिर कुचल दे इसका, 

ये सर्प बड़ा है। 

Monday, September 7, 2020

चलो न! सब भूल जायें...


चलो न! सब भूल जायें, 

किस्से हमारे फिर दोहरायें । 

वही मैं और वही तुम, 

एक बार फिर हो जायें । 


तुम्हारी झील सी आँखों में, 

क्यों न फिर से गोते खाएं ? 

कि डूबें इनमें ऐसे हम, 

दोबारा न ऊपर आयें । 


महक बदन की सौंधी सी, 

फिर से सांसों में भर लायें । 

स्वाद लबों का मीठा सा, 

एक बार फिर चख आयें । 


गुस्सा तेरा, गुस्सा मेरा, 

वहीं जाकर छोड़ आयें । 

हाँथ थाम लें फिर से ऐसे, 

छोड़कर भी छुड़ा न पायें । 


वक़्त में पीछे जाकर हम, 

तुमको फिर से ढूँढ लायें । 

पर सच जानकर वक़्त का

हम बेबस इसे बदल न पायें। 


ऐसा होता, वैसा होता, 

झूठी हम, उम्मीद लगायें । 

क्यों याद तुझे हम करते-करते, 

अपने दिल को और तड़पायें । 


पोछ कर अपने आँसू हम, 

उन किस्सों को न दोहराएँ। 

चलो न! सब भूल जायें । 

चलो न! सब भूल ही जायें । 

Thursday, August 20, 2020

अक्सर मेरा, शहर में तेरे


अक्सर मेरा, शहर में तेरे,

जाना होता रहता है। 

देख के मुझको, तेरे बिन,

हर गली चौराहा कहता है। 


"क्यों तुम्हारा चेहरा अब, 

कुछ मुरझाया सा लगता है? "

कैसे मैं बतलाऊँ उनको, 

अंजाना सब दिखता है। 


घूमें जिन गलियों में हम, 

वहाँ भी वीरां, सब चुप सा है। 

ये शहर, वो शहर नहीं, 

जो यादों में बसेरा करता है। 

Monday, August 3, 2020

प्यारी बहना !


दिन हो या रात हो, 

बाहर जब भी होता हूँ, 

मम्मी से पहले कॉल तेरा ही आता है। 


"सच सच बता मुझे, 

तू ठीक है ना?"

"हाँ" न बोलूँ तबतक सवाल यही आता है। 


"पापा गुस्से में हैं, 

अभी बात मत करना!"

वो कॉल मुझे पापा की डाँट से बचाता है। 


तू बाहर होकर भी, 

ख्याल रखती है मेरा, 

हर कॉल में प्यार साफ नज़र आता है। 


जब भी मेरी बात, 

तुझे पसंद नहीं आती, 

लाड़-प्यार तेरा गुस्से में बदल जाता है। 


चाहे कितना भी लड़ले, 

मेरी प्यारी बहना, 

ज़रूरत पर तुझे भईया ही याद आता है। 

Thursday, July 23, 2020

अंजान थे हम


अंजान थे हम, इन गलियों से, 


वाक़िफ़ इनसे, करवाया क्यों? 


जाना तो, कहीं और ही था, 


इनमें हमको, भटकाया क्यों?  


खुश ही थे हम, तन्हा पहले, 


हाँथ थमा कर, छुड़वाया क्यों ? 


लड़ बैठा, नादाँ दिल हमसे


अपने ही दिल से, लड़वाया क्यों? 

Sunday, July 12, 2020

शायद तुम


शायद तुम, कभी समझ न पाओ । 

वो मायूस सुबह-से उगते सूरज, 

वो कश्ती-सी डूबी शामें। 



शायद तुम, कभी समझ न पाओ । 

वो सालों-से लंबे हर दिन, 

वो सदियों-सी लंबी रातें। 



शायद तुम, कभी समझ न पाओ ।  

वो सुई-से चुभते घड़ी के काँटे, 

वो ज़ख़्मों-सी कुछ गहरी यादें । 



शायद तुम, कभी समझ न पाओ । 

वो कांच-से टूटे सच्चे सपने, 

वो सच-सी लगती झूठी बातें। 


Sunday, July 5, 2020

देखा आज चाँद को


देखा आज चाँद को, 

इक झीनी सी बदरी के पीछे । 

जैसे चुनरी में शर्मायें हो, 

तुम अपनी अखियों को मींचे । 


धागे सी हवायें ये, 

तेरी ओर हैं मुझको खींचे । 

उछले तेरी उंगलियों से, 

फुर-फुर बारिशों के छींटे । 


देखूँ तुमको चकोर सा, 

ज़मीं पर आ जाओ न नीचे । 

गोद में तेरी सिर रख के, 

मैं सुन लूँ बोल लबों से मीठे ।