Sunday, July 5, 2020

देखा आज चाँद को


देखा आज चाँद को, 

इक झीनी सी बदरी के पीछे । 

जैसे चुनरी में शर्मायें हो, 

तुम अपनी अखियों को मींचे । 


धागे सी हवायें ये, 

तेरी ओर हैं मुझको खींचे । 

उछले तेरी उंगलियों से, 

फुर-फुर बारिशों के छींटे । 


देखूँ तुमको चकोर सा, 

ज़मीं पर आ जाओ न नीचे । 

गोद में तेरी सिर रख के, 

मैं सुन लूँ बोल लबों से मीठे । 

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