इक झीनी सी बदरी के पीछे ।
जैसे चुनरी में शर्मायें हो,
तुम अपनी अखियों को मींचे ।
धागे सी हवायें ये,
तेरी ओर हैं मुझको खींचे ।
उछले तेरी उंगलियों से,
फुर-फुर बारिशों के छींटे ।
देखूँ तुमको चकोर सा,
ज़मीं पर आ जाओ न नीचे ।
गोद में तेरी सिर रख के,
मैं सुन लूँ बोल लबों से मीठे ।
Mast re baba
ReplyDeleteThank You Bhai
DeleteNice Bhanu..
ReplyDeleteThanks Bhai
Delete🖤
ReplyDeleteThanks Bhai
Deleteबहुत सुन्दर कविता है भाई
ReplyDeleteThanks Bhai
DeleteBahut badiya 👏👏
ReplyDeleteसुन्दर कविता
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