Monday, September 7, 2020

चलो न! सब भूल जायें...


चलो न! सब भूल जायें, 

किस्से हमारे फिर दोहरायें । 

वही मैं और वही तुम, 

एक बार फिर हो जायें । 


तुम्हारी झील सी आँखों में, 

क्यों न फिर से गोते खाएं ? 

कि डूबें इनमें ऐसे हम, 

दोबारा न ऊपर आयें । 


महक बदन की सौंधी सी, 

फिर से सांसों में भर लायें । 

स्वाद लबों का मीठा सा, 

एक बार फिर चख आयें । 


गुस्सा तेरा, गुस्सा मेरा, 

वहीं जाकर छोड़ आयें । 

हाँथ थाम लें फिर से ऐसे, 

छोड़कर भी छुड़ा न पायें । 


वक़्त में पीछे जाकर हम, 

तुमको फिर से ढूँढ लायें । 

पर सच जानकर वक़्त का

हम बेबस इसे बदल न पायें। 


ऐसा होता, वैसा होता, 

झूठी हम, उम्मीद लगायें । 

क्यों याद तुझे हम करते-करते, 

अपने दिल को और तड़पायें । 


पोछ कर अपने आँसू हम, 

उन किस्सों को न दोहराएँ। 

चलो न! सब भूल जायें । 

चलो न! सब भूल ही जायें । 

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