Thursday, July 23, 2020

अंजान थे हम


अंजान थे हम, इन गलियों से, 


वाक़िफ़ इनसे, करवाया क्यों? 


जाना तो, कहीं और ही था, 


इनमें हमको, भटकाया क्यों?  


खुश ही थे हम, तन्हा पहले, 


हाँथ थमा कर, छुड़वाया क्यों ? 


लड़ बैठा, नादाँ दिल हमसे


अपने ही दिल से, लड़वाया क्यों? 

Sunday, July 12, 2020

शायद तुम


शायद तुम, कभी समझ न पाओ । 

वो मायूस सुबह-से उगते सूरज, 

वो कश्ती-सी डूबी शामें। 



शायद तुम, कभी समझ न पाओ । 

वो सालों-से लंबे हर दिन, 

वो सदियों-सी लंबी रातें। 



शायद तुम, कभी समझ न पाओ ।  

वो सुई-से चुभते घड़ी के काँटे, 

वो ज़ख़्मों-सी कुछ गहरी यादें । 



शायद तुम, कभी समझ न पाओ । 

वो कांच-से टूटे सच्चे सपने, 

वो सच-सी लगती झूठी बातें। 


Sunday, July 5, 2020

देखा आज चाँद को


देखा आज चाँद को, 

इक झीनी सी बदरी के पीछे । 

जैसे चुनरी में शर्मायें हो, 

तुम अपनी अखियों को मींचे । 


धागे सी हवायें ये, 

तेरी ओर हैं मुझको खींचे । 

उछले तेरी उंगलियों से, 

फुर-फुर बारिशों के छींटे । 


देखूँ तुमको चकोर सा, 

ज़मीं पर आ जाओ न नीचे । 

गोद में तेरी सिर रख के, 

मैं सुन लूँ बोल लबों से मीठे ।