अक्सर मेरा, शहर में तेरे,
जाना होता रहता है।
देख के मुझको, तेरे बिन,
हर गली चौराहा कहता है।
"क्यों तुम्हारा चेहरा अब,
कुछ मुरझाया सा लगता है? "
कैसे मैं बतलाऊँ उनको,
अंजाना सब दिखता है।
घूमें जिन गलियों में हम,
वहाँ भी वीरां, सब चुप सा है।
ये शहर, वो शहर नहीं,
जो यादों में बसेरा करता है।